लड़कपन की बहुत याद आती है, "कितने क्यूट हो" कहकर अपने पास बुलाती थी। अब जो मैं तरुण हो गया हो हूँ, अब अपने पास बुलाती नहीं।। शरारतें सब वही हैं, बस उम्र अब बड़ रही है। लड़कपन की सहेली, पड़ोसन, सब मुझे देखते ही संभल रही है।। अंतस को बहलाकर, खुद को भी फुसला रहा हूँ। दरअसल, अकेले रहना चाहू तो, एकाग्रचित नहीं रह पा रहा हूँ।। अब न ख्वाहिशें करने लगा है, हृदय, एक किशोरी पर फिसलने भी लगा है। खुद को संभाल लूँ, फिर ये नहीं संभलता, और इसे संभाल लूँ, फिर मैं नहीं संभलता।। -------------------------------------------------------------- अजय गंगवार 21-Apr-2021 7:30PM #ajayapril1991 #LyricsWikiBlog #MensajeDelAmor --------------------------------------------------------------
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